आज़ादी के कई दशकों बाद भी, सामाजिक मान्यताओं और रीति-रिवाजों के बोझ तले दबी भारतीय महिलाएं अपनी स्वतंत्र पहचान साबित करने के लिए लगातार संघर्ष करती रही हैं. भले ही व्यावसायिक तौर पर वे कई ऊंचे मुकाम हासिल करती आई हों, लेकिन हमारा रुढ़िवादी समाज आज भी उन्हें एक असहाय और अबला के रूप में ही देखता है. यह वो समाज है जो लड़की के जन्म को एक अभिशाप मानता है और पैदा होते ही उसकी हत्या कर देना अपनी परंपरा समझता है. हालांकि समय बदलने के साथ ऐसी कुप्रथाओं पर कुछ हद तक विराम जरूर लगा है.
अब लड़कियों को पैदा होते ही नहीं मार दिया जाता, बल्कि उन्हें इस कदर शोषित किया जाता है कि उनका जीवन ही उनके लिए मजबूरी बन जाता है.
Views:
462
|
Added by:
manoj
|
Date:
09/01/2012
|