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 हम जो सोचते हैं , वो बन जाते हैं.
 
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Main » 2012 » January » 09
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, और परिवार समाज की पहली इकाई है, ये लाइने हम सबने बचपन में किताबो में पढ़ी हैं. एक मनुष्य की जिंदगी में परिवार का बहुत महत्व होता है खास कर किसी बच्चे की परवरिश में.

                   परिवार का माहौल बच्चे के सामाजिक और मानसिक विकास में बहुत अहम भूमिका निभाता है. बच्चा वही सीखता और करता है जिसकी शिक्षा उसे उसके माता-पिता उसे देते हैं. इसीलिए प्राचीन काल से ही परिवार को आरंभिक विद्यालय का दर्जा दिया गया है. अभिभावकों से मिली शिक्षा ही आगे चलकर व्यक्ति के चरित्र का निर्माण करती है और उसकी यही चारित्रिक विशेषताएं समाज में उसकी भूमिका और पहचान निर्धारित करती हैं.

Views: 434 | Added by: manoj | Date: 09/01/2012 | Comments (0)

आज़ादी के कई दशकों बाद भी, सामाजिक मान्यताओं और रीति-रिवाजों के बोझ तले दबी भारतीय महिलाएं अपनी स्वतंत्र पहचान साबित करने के लिए लगातार संघर्ष करती रही हैं. भले ही व्यावसायिक तौर पर वे कई ऊंचे मुकाम हासिल करती आई हों, लेकिन हमारा रुढ़िवादी समाज आज भी उन्हें एक असहाय और अबला के रूप में ही देखता है. यह वो समाज है जो लड़की के जन्म को एक अभिशाप मानता है और पैदा होते ही उसकी हत्या कर देना अपनी परंपरा समझता है. हालांकि समय बदलने के साथ ऐसी कुप्रथाओं पर कुछ हद तक विराम जरूर लगा है.
अब लड़कियों को पैदा होते ही नहीं मार दिया जाता, बल्कि उन्हें इस कदर शोषित किया जाता है कि उनका जीवन ही उनके लिए मजबूरी बन जाता है.
Views: 425 | Added by: manoj | Date: 09/01/2012 | Comments (0)

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