मंत्री महोदय, नमस्कार
पहचाना मुझे? आप ही के लोक सभा क्षेत्र से हूँ. आपके घर से कुछ ही दूरी पर हमारा भी घर है. बीवी-बच्चों के साथ रहता हूँ. जिंदगी मजे से कट रही थी. अब भी कट रही है. आपकी दया से (पै)खाने-पीने में कोई कमी नहीं है माई-बाप. लेकिन इधर कुछ दिनों से तीन समस्या आन पड़ी है. आप सरकार हैं इसलिए आपसे नहीं बता रहा हूँ बल्कि बचपन में आपकी-हमारी अच्छी जमती थी, आपका दिया मैंने बहुत खाया है माई-बाप, वो भी सफाई के साथ ताकि अगले दिन आप फिर से वहीँ आएं. इसीलिए आप से अपनी व्यथा बता रहा हूँ. समस्या 1 – पेट के भविष्य की मालिक जगह-जगह अख़बारों और दीवारों पर लगे इश्तिहार यह बताते हैं कि सरकार अब हर जगह शौचालय बनाएगी. क्या यह सही है मालिक? फिर हमारा क्या होगा मालिक? हमारे लिए तो नमक-रोटी से लेकर पुआ-पकवान सब आप ही का शौच है. क्या इससे हमारा संवैधानिक हक़ छिना नहीं जा रहा है? किसी एक समुदाय के हित के लिए दूसरे का हक़ छिनना कहाँ तक जायज है? और फिर यह तो सबसे पहला व जरूरी हक़ है, वो फिल्म है न – रोटी, कपड़ा और मकान. तो माई-बाप इस मुद्दे को लोकसभा में उठाने का कष्ट करें, बड़ी मेहरबानी होगी. समस्या 2 – सामाजिक भेदभाव की आप लोगों ने देश की प्रगति के लिए बड़े काम किए. नए-नए तरह के उद्योग-धंधे लाए. देश की आर्थिक तरक्की भी हुई. पर जनाब एक व्यवसाय आपने ऐसा भी लाया जिससे हमें बड़ी तकलीफ़ उठानी पड़ रही है. आप लोगों कोगोरी चमड़ी वाले सूअर नहीं लाने चाहिए थे. वे हमारे ही देश में हमसे भेदभाव करते हैं, हमें तिरस्कार की नजर से देखते हैं. घुटन होती है मालिक अब. आपने हमें इतना बेगाना बना दिया? अरे अपना भाई अगर काला हो तो क्या भाई नहीं होता? अगर नहीं, तो फिर हमारे लिए कुछ व्यवस्था कीजिए मालिक. हमें सामाजिक आरक्षण दीजिए ताकि हम सर उठाकर जी सकें. समस्या 3 – जेनरेशन गैप और संस्कार बचाने की मालिक ये जो तीसरी समस्या है, यह सबसे गंभीर है. बाकि दो समस्या से समझौता किया भी जा सकता है, पर यह तो मेरे अस्तित्व से जुड़ी है. इसके कारण मेरा घर टूट रहा है. घर का संस्कार बिखर रहा है. कृप्या इस पर ध्यान दें. भारत सरकार के प्रति पूरा फ़र्ज़ निभाते हुए मेरे दो बच्चे हैं – एक बेटा, एक बेटी. दोनों के दोनों एकदम नालायक. पर खुद को डूड और मुझे खडूस बोलते हैं. कहते हैं, मैं जेनरेशन गैप को एडजस्ट नहीं कर पाया हूँ. मेरे संस्कारों को वो दकियानूसी बताते हैं और अपने विचारों को मॉडर्न. कुछ प्रसंग में संस्कारों के टकराव की झलक देखिए : मैं | मेरे बच्चे | प्रणाम करता हूँ. | हाय-हैल्लो करते हैं. | मेरी बीवी ने अपने बच्चों को दूध पिलाया. | बच्चों को दूध पिलाने से बेटी का शेप खराब. | गुह खाता हूँ. | शिट खाते हैं. | जरूरी हुआ तो हिंदी में धीरे से बोलता हूँ, वो भी असभ्यता की निशानी मानी जाती है. | खुले आम फक् बोलते हैं, और तो और इसे अभिजात्य वर्ग की पहचान मानते हैं. |
यही समस्या है माई-बाप. बड़ी कृपा होगी, अगर इन पर ध्यान दें तो. संसद में इन मुद्दों को जरूर उठाएँ. राष्ट्र-हित के मुद्दे हैं ये. वैसे स्व-कथित हमारे हित-साधक नेता गर्जन भैया आये थे एक दिन. हमारी जाति का वोट मांगने. कह रहे थे वे हमारी बात सरकार तक पहुँचाएँगे. पर हम तो आपके साथ बचपन से ……….. पर कुछ कीजिए, नहीं तो ……….. मतदाता सूची में हम बहु-संख्यक हैं ………
चन्दन कुमार "चन्दन"
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